Ai jindgi kyon rulati ho?



ऐ-ज़िन्दगी मुझे हर पल क्यों रुलाती है ......
फिर क्यों जीने की नयी उम्मीद जगाती है ..........
कहीं दुश्मनी तो नहीं मेरी-तेरी पुरानी ?..........

मेरी ही शक़्ल में क्यों पल-पल डराती है ............
बिख़र सा जाता हूँ अपने ही आसमान में..............
समेटता हूँ ख़ुद को तिनका-तिनका करके ..........
फिर एक तूफ़ान सी आँधी आ जाती है ............
बिख़र जाता हूँ वक्त की धुंध में कहीँ ..... ...........
नहीं चाहता हौसला जुटाना फिर से मैं ... ..............
क्यों मेरे अस्तित्व का ऐहसास दिलाती है..............

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