कहीं भी प्यार नहीं है ||



इंसान आजकल का वफादार नहीं है |
मिलती उसे सजा जो गुनहगार नहीं है ||
ये जिंदगी मिली है तुझे चार दिनों की |
बेकार जिंदगी है अगर प्यार नहीं है ||
इंसाफ का जमाना बदल आज गया है |
अब झूठ और सच भी चमकदार नहीं है||
अब घर मकान भी ये हवादार बने है |
पर आजकल झरोखे हवादार नहीं है ||
अब " मैं कह रहा  हूं जरा देख गुजर के |
ये सब है दिखावा कहीं भी प्यार नहीं है ||

Comments

Popular posts from this blog

Dil se..>>

Surveshu Matu+pitu

Dil se...>>