Dil se..>>



बहुत पुरानी ये दास्तां है न जाने कैसे बहल रहे है
नही गुज़रती ये रात अपनी वो रास्तों पर टहल रहे है।
निगाह मिलते ही क्या हुआ था ज़रा उन्ही से तो पूछ लेते
हमारी नींदे भी उड़ चुकी हैं सनम भी करवट बदल चुके हैं।
खुली थी ज़ुल्फें उड़ा था ऑचल वो चांद छत पर जो आ गया था
बहुत हसीं था वो शब का मंज़र गुलों के दिल भी मचल रहे हैं।
छलकती नदियों मे जलता सूरज अजब सी रंगत बिखर गई है
फलक पे उड़ते ही जा रहे है ये अब्र जैसे उछल रहे हैं।
ख़ुदा नही है कोई जहां मे सभी में कमियां दिखाई देती
वही है इंसा जहाॅ मे जिन्दा जो गर्दिशों मे सफल रहे हैं।
सुकूं मिलेगा बस अपने घर मे भले महल हो या झोपड़ी हो
खुशी कमाई है ज़िन्दगी में नसीहतों पर अमल रहे हैं।
नहीं कमाई है पंछियों की मगर परों से ही हौसले हैं
कहां-कहां से जुटाते तिनके वो आबोदाना
में पल रहे है।।

फरिश्ता निकले वो रौशनी के हरेक जर्रा चमक रहा है
नज़र मे चमके कभी सितारें वो गीत कैसे बहल रहे है।..
                                          ...Dil se..

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