दौर के अब साथ चलना....



हमें इस दौर के अब साथ चलना खूब आता है
बहकने का नहीं है डर संभलना खूब आता है


चलाकर देख ले जितनी भी चाहे आंधियाँ मौसम
हमें भी रुख हवाओं का बदलना खूब आता है

बिछा अब लीजिए काँटे भी चाहे मेरी राहों में
हैं हम भी आबे गुल काँटों में खिलना खूब आता है

रखो तासीर पानी सी कभी माँ ने सिखाया था
हमें हर रंग हर आकार में ढलना खूब आता है

बड़े मासूम से हैं हम किसी से कुछ नहीं कहते
मगर जो ज़िद पे आ जाएं मचलना खूब आता है//......

                        ....Dil se....

Comments

Popular posts from this blog

Dil se..>>

Surveshu Matu+pitu

Dil se...>>