Dil se..>>



चाहे अर्जी मेरी चाहत की तू मंजूर न कर
रूठ जायें हमें इतना कभी मजबूर न कर
थक गये हम तो बहुत बार ये समझा के तुझे
आइने दिल कभी मगरूर से तू चूर न कर
आदमी कुछ भी नहीं है तेरी रहमत के बिना
माफ कर दे इसे इतना कभी मगरूर न कर
बात इतनी है मगर उसको ये समझायें कैसे
चाँदनी रात दिवाने को तू रंजूर न कर
इश्क में तेरे दिवाना हुआ फिरता है जो
मर ही जाये उसे इतना कभी मजबूर न कर
कौन पाया है समझ इस तेरी चाहत का जुनून
ये भी सह लेंगे मुहब्बत मेरी मंजूर न कर

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