क्या पाया मैंने दिल हार कर ....

सरल विरल  सी अभिलाषा
मन में  लिय एक जिज्ञाषा
सो न सका मैं रात भर यह विचार कर
क्या पाया मैंने दिल हार कर
प्यार खोने का नाम है या पाने का ?
खोने का ? तो जो रातों की नींद  मैंने खोई थी
ख़्वाबों की फसल जो मैंने बोई थी
करके हवाले उसे जब किसी गैर के  
चल जो दिए किनारे किनारे नहर के
क्या उससे प्यार में मेरी वो जीत थी
हाँ, तभी तो वो मुझसे भयभीत थी 
प्यार में,  हारने वाला सब कुछ लूट  कर ले जाता
फिर भी वो एक बार भी  कहाँ मुस्कराता है
मैं तो मुस्करा रहा हूँ सब कुछ हार कर
हाँ मगर बैठा हूँ तमन्नाओं को मारकर
तमन्नाएँ  शजर की जड़ें  होती हैं
दिल की जमीं  से खुशियों का पानी सोखती  हैं 
मेरा तन जर्जर कर दिया है अभिलाषाओ  ने
आत्मा को तोड़ दिया है निराशाओं ने
आज मुझ में फिर एक उम्मीद जगी है
गम न अब और न करो दुनियां का,
कौनसी  यह अपनी सगी है   

Comments

Popular posts from this blog

Dil se..>>

Surveshu Matu+pitu

Dil se...>>