जीन्दगी इक चाह कर तूँ। ....
Gaurav kumar:
उलझनें बनकर खुदी की,
ना नज़र गुमराह कर तूँ।
जीन्दगी हर पल नई है,
आख़िरी इक चाह कर तूँ।
ना नयन की कोपलों को,
अश्क से तर आह भर तूँ।
ना दुखी होकर खुदा से,
मौत की आगाह कर तूँ।
जीन्दगी हर पल नई है,
आख़िरी इक चाह कर तूँ।
ख्वाइसें पूरी सभी हों,
चाहना झूठा सबब है।
मंजिलें मुश्किल भरीं तो,
जीन्दगी जीना सबक़ है।
ना निगाहें फेर खुद से,
बस ख़ुशी की राह कर तूँ।
जीन्दगी हर पल नई है,
आख़िरी इक चाह कर तूँ।
:-)
Comments
Post a Comment